Wednesday, 9 November 2011

इश्क हुआ इस गम से ...

फितरत है बदलना मौसम की                                                    
मुझे लोग मिले यूँ मौसम से 
ना वो शातिर थे, ना मैं नादाँ थी 
कहते हैं वक़्त की महिमा थी 

न वो संग रहे , न वो छोड़ सके 
इक नींद खुली और मै तन्हा थी 
न मैं बिखरी ही , न मैं जुड़ पाई
इक मूरत सी हर लम्हा थी 

तकिये को भिगाकर सोई कभी 
बारिश में नहाती रोई कभी 
कभी गीली घास में टेहली तो 
काली रातों में खोई कभी 

खुशियाँ तो यहाँ मेहमाँ सी हैं 
इक गम न गया मुझे छोड़ कभी                                                                                      
संग रहा ये तन्हा शामों में 
संग रहा ये दिन के शोर में भी 

मुझे इश्क सा है अब इस  गम से 
इसे दिल में बसा कर रखती हूँ 
पलकों में ज़माना देख न ले 
मुस्कां में छुपा कर रखती हूँ 

मेरे रब की मेहर कुछ ऐसी है 
मै आज भी लहर की मस्ती हूँ 
आँखों में सजाती हूँ सपने 
तकिये के तले गम रखती हूँ 

-Varu

Friday, 9 September 2011

आदत

शीलाओं से टकराने  की,
काँटों में से जाने की,
और ज़ख्म ही पाने की,
आदत सी है मुझे...

सबपे भरोसा करने की,
करके धोखा खाने की,
फिर भी न पछताने की,
आदत सी है मुझे....

हर सीप में मोती है,
ये सोच के चलती हूँ,
इक अदद मोती पाने को,
हर वक़्त मचलती हु....

सीपों से भरे पूरे,
सागर के किनारों से,
भी खाली हाथ आने की,
आदत सी है मुझे......

पतझड़ में बहारों में,
सागर के किनारों में,
यु ही वक़्त गवाने की,
आदत सी है मुझे......

दिए नही जलते हैं,
तूफानी हवाओं में,
लोग नही चलते संग,
कांटो भरी राहों में.....

फर भी हवा के आगे ही,
शम्मा जलने की,
चीराग सजाने की,
आदत सी है मुझे.......

जानती हु सदा संग,
कोई रहता नही है,
खारोंदा कोई न ऐसा,
जो बहता नही है,

फिर भी समुंदर किनारे,
बिना हिम्मतो को हारे,
रेत के खारोंदे बनाने की,
आदत सी है मुझे.........

कहने को तो हर कदम,
बहुत सोच के चलती हु,
भलो को मै बुरों से,
बहुत खोज के चलती हु,

 गेरों  ने तो धोका,
दिया नही अब तलक,
अपनों से ही दगा पाने की,
आदत सी है मुझे.............

न लैला ने मजनू को,
पाया था इस जहाँ में,
ना शीरीं और फरहाद,
का मिलन हुआ था.....

फर भी है क़यामत के,
उस राह को पाने की,
उस राह पे जाने की,
हसरत सी है मुझे..........

रंग तो ना जाने,
इस दुनिया में कितने है,
सोना और चांदी भी,
जहाँ में बिखरे हैं.......

इन्द्रधनुष तक ही जाने की,
सूरज से सोने को पाने की,
चाँद से चांदी चुराने की,
शिद्दत सी है मुझे..........

इस युग में सब रावण हैं,
कोई राम नही होता,
ले आए संजीवनी तो भी,
हनुमान नही होता........

फिर भी किसी रावण में,
एक राम को पाने की,
चाहत सी है मुझे .......................!!!

- V@ru




Tuesday, 6 September 2011

माटी


जब चाक पे माटी चढ़ती है
हाथों की ओंट से बढती है
कोई रूप निराला लेती है
फिर अग्नि परीक्षा देती है

करती  है परीक्षा पार तभी
खुलते हैं जग के द्वार सभी
अपना जीवन भी माटी सा
अग्नि सा है संसार अभी

कभी लिपता है इससे आँगन
कभी खुशबु  से झूमे ये मन
पर धूल कहीं बन जाए कभी
और धरती माँ कहलाए कभी

दिखती है ये लाचार कभी
बह जाती है बेकार कभी
पर जब भी बने रब की मूरत
झुकते हैं शीश हज़ार तभी

जितने होते माटी के रंग
उतने ही जीवन के हैं ढंग
कट जाए कभी गुमनामी में
कभी जगमग हो तारों के संग

खुशियों का मिले अम्बार कभी
आंसू की मिले बौछार कभी
पर जो भी मिले रख लो हस कर
कुदरत के हैं उपहार सभी.....:)

-varu

पंख


पिंजरे में कैद बैठी चिड़िया
देखो के सोच रही है क्या
जब उड़ना नहीं नसीब में तो
क्यों पंख देये मुझको मौला

गिरकर ही तो उठना आएगा
उठकर ही तो संभला जाएगा
ये निघेबान पिंजरा कब तक
मेरे पंखों को जंग लगाएगा

एक दिन तो निकलूंगी बाहर
पाउंगी मैं वो स्वतंत्र  समां
चट्टान तोड़ फूटे झरना
उसे कोई रोक सका है कहाँ

वो कहते हैं इस दुनिया में
हर कदम पे है कोई जाल बिछा
उस जाल के दर से हम नादां
इस जेल में जीते रहेंगे क्या

सोने के पिंजरे में रखकर
वो चाहते हैं मेरा ही भला
पर ख़ुशी के दामन में छिपकर
क्या गम से कोई बच है सका

उस इश के शीश मैं भी है विष
अग्नि में झुलसी थी सीता
पाँच पति भी रक्षा कर न सके
सदियों से बताती है गीता

अपने धर्मो कर्मो को कभी
दुनिया से नहीं मैंने तौला
बस यही सोचती वो चिड़िया
क्यों पंख देये मुझको मौला ....

-varu

जिंदगी


वक़्त की तलवार पर
ये नाचते कदम
मुश्किलों के काँटों में
झुलसता हुआ मन

शिकवे हों हज़ार भले
जिंदगी से पर
आना चाहेंगे दोबारा
ले के फर जनम

कह गए है ज्ञानी के
जीवन है एक जाल
हमको तो हर धागा इसका
लगता है कमाल

कहते हैं वो के मोक्ष पा
सब-चक्रव्यूह ख़तम
किसने देखा मोक्ष को
है मिथ्या या भरम

माना के जीने मरने में
तकलीफ है मगर
सोचो करेंगे क्या वहां
हम होके भी अमर

जीने की है कीमत तभी
जब मरने का हो डर
हर पल है  एक राज़ जिससे
हम है  बेखबर 

कूए का हो करना भी क्या
गर प्यास ही न हो
कांटो भरी डगर ना,जलता वो दिन अगर
उस ठंडी हरी घास का एहसास ही ना हो

रात ना आए
ना डूबे ये दिन अगर
सुबह की पहली किरण का
आभास ही ना हो

जीवन है एक सफ़र
कहो, जाएंगे किस डगर ?
मन में अगर किसी मंजिल की
तलाश ही ना हो

ख़ुशी का साथी गम है
सुख दुःख की संगिनी
किसने किया जुदा इन्हें-किसने किया अलग
रब ने बनाई जिंदगी ,मृत्यु की बंदिनी

-Varu

खुदा


कभी ढूंडा है तुझे मंदिर में
कभी मस्जिद में तुझको खोजा
कभी व्रत हैं किये बस तेरे लिये
कभी रक्खा किये बन्दे रोज़ा

पूजा है तुझे तुलसी में भी
तुझे पीपल मैं भी है पूजा
हर मन में एक विश्वास बसा
नहीं तेरे सिवा कोई दूजा

पत्थर पे शीश झुकाते हैं
कभी नाग को दूध पिलाते हैं
तुझसे मिलने को भक्त तेरे
चट्टानें भी चढ़ जाते हैं

रखता है कोई विश्वास तो कोई
अंधविश्वास कह हँसता है
कहीं बंधते धागे मन्नत के
कोई चरणों में बलि रखता है

कहीं तू है "इश्वर का बेटा "
कोई कहता तुझको जगतपिता
कोई रब कहकर पूजे तुझको
कहीं कहते तुझको देवी माँ

तुझे माँगा 'सति" ने तुझसे ही
कहीं "मीरा " तेरी दीवानी हुई
कभी दशरथ का तू पुत्र बना
कहीं "द्रौपदी " का तू है भाई

नहीं देखा तुझे किसी ने पर
"वो सब देखता है " ,ये कहते हैं
कोई धर्म से तो कोई इच्छा से
तेरे भक्त बने सब रहते हैं

ना माने तुझे, तो तू कुछ भी नहीं
माने, तो ये जग संसार तेरा
जो माने तुझे कहते हैं वो
ऊपर  तुझसे मिलना सबको
मैं चाहू तुझे तो कहती हूँ
आकर मिल जा एक बार ज़रा ....


-varu

कैसा आलम


मेरी ही आँखें आंसू बहाती हैं और ,
मेरे ही गाल उनको बहा देते हैं,
मेरे ही अपने देते हैं घाव मुझे
मेरे ही ज़ख्म मरहम लगा लेते हैं ,

साथ माँगू किसी से ,गवारा नहीं
मेरा साहिल या कोई किनारा नहीं
बहुत मुश्किलें आई हैं बनके मेहमां
मेरी गैरत ने दामन पसारा  नहीं

क्यों नहीं है यहाँ मेरे जैसा कोई
या बनी मैं नहीं इस जहाँ के लिये
आग में जलके जैसे दमकता है कुंदन
मुझको भेजा गया इम्तहान के लिये

मेरे सपनो का कोई खारोंदा कभी
अपने संग में बहाती लहर ले गई
मैंने खुशियों का तोहोफा भी जिसको दिया
मुझे बदले में वो शय ज़हर दे गई

अब तो ऐसा है आलम मेरी रूह का
मेरी लोरी ही मुझको सुला देती है
मेरे सपने ही देते हैं मुझको जगा
मेरी तन्हाई महफ़िल सजा देती है

आके गम मेरा मुझको हँसाता कभी
आके बरसात मुझको जला देती है ........