Tuesday, 6 September 2011

खुदा


कभी ढूंडा है तुझे मंदिर में
कभी मस्जिद में तुझको खोजा
कभी व्रत हैं किये बस तेरे लिये
कभी रक्खा किये बन्दे रोज़ा

पूजा है तुझे तुलसी में भी
तुझे पीपल मैं भी है पूजा
हर मन में एक विश्वास बसा
नहीं तेरे सिवा कोई दूजा

पत्थर पे शीश झुकाते हैं
कभी नाग को दूध पिलाते हैं
तुझसे मिलने को भक्त तेरे
चट्टानें भी चढ़ जाते हैं

रखता है कोई विश्वास तो कोई
अंधविश्वास कह हँसता है
कहीं बंधते धागे मन्नत के
कोई चरणों में बलि रखता है

कहीं तू है "इश्वर का बेटा "
कोई कहता तुझको जगतपिता
कोई रब कहकर पूजे तुझको
कहीं कहते तुझको देवी माँ

तुझे माँगा 'सति" ने तुझसे ही
कहीं "मीरा " तेरी दीवानी हुई
कभी दशरथ का तू पुत्र बना
कहीं "द्रौपदी " का तू है भाई

नहीं देखा तुझे किसी ने पर
"वो सब देखता है " ,ये कहते हैं
कोई धर्म से तो कोई इच्छा से
तेरे भक्त बने सब रहते हैं

ना माने तुझे, तो तू कुछ भी नहीं
माने, तो ये जग संसार तेरा
जो माने तुझे कहते हैं वो
ऊपर  तुझसे मिलना सबको
मैं चाहू तुझे तो कहती हूँ
आकर मिल जा एक बार ज़रा ....


-varu

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