Tuesday, 6 September 2011

जिंदगी


वक़्त की तलवार पर
ये नाचते कदम
मुश्किलों के काँटों में
झुलसता हुआ मन

शिकवे हों हज़ार भले
जिंदगी से पर
आना चाहेंगे दोबारा
ले के फर जनम

कह गए है ज्ञानी के
जीवन है एक जाल
हमको तो हर धागा इसका
लगता है कमाल

कहते हैं वो के मोक्ष पा
सब-चक्रव्यूह ख़तम
किसने देखा मोक्ष को
है मिथ्या या भरम

माना के जीने मरने में
तकलीफ है मगर
सोचो करेंगे क्या वहां
हम होके भी अमर

जीने की है कीमत तभी
जब मरने का हो डर
हर पल है  एक राज़ जिससे
हम है  बेखबर 

कूए का हो करना भी क्या
गर प्यास ही न हो
कांटो भरी डगर ना,जलता वो दिन अगर
उस ठंडी हरी घास का एहसास ही ना हो

रात ना आए
ना डूबे ये दिन अगर
सुबह की पहली किरण का
आभास ही ना हो

जीवन है एक सफ़र
कहो, जाएंगे किस डगर ?
मन में अगर किसी मंजिल की
तलाश ही ना हो

ख़ुशी का साथी गम है
सुख दुःख की संगिनी
किसने किया जुदा इन्हें-किसने किया अलग
रब ने बनाई जिंदगी ,मृत्यु की बंदिनी

-Varu

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