Friday, 9 September 2011

आदत

शीलाओं से टकराने  की,
काँटों में से जाने की,
और ज़ख्म ही पाने की,
आदत सी है मुझे...

सबपे भरोसा करने की,
करके धोखा खाने की,
फिर भी न पछताने की,
आदत सी है मुझे....

हर सीप में मोती है,
ये सोच के चलती हूँ,
इक अदद मोती पाने को,
हर वक़्त मचलती हु....

सीपों से भरे पूरे,
सागर के किनारों से,
भी खाली हाथ आने की,
आदत सी है मुझे......

पतझड़ में बहारों में,
सागर के किनारों में,
यु ही वक़्त गवाने की,
आदत सी है मुझे......

दिए नही जलते हैं,
तूफानी हवाओं में,
लोग नही चलते संग,
कांटो भरी राहों में.....

फर भी हवा के आगे ही,
शम्मा जलने की,
चीराग सजाने की,
आदत सी है मुझे.......

जानती हु सदा संग,
कोई रहता नही है,
खारोंदा कोई न ऐसा,
जो बहता नही है,

फिर भी समुंदर किनारे,
बिना हिम्मतो को हारे,
रेत के खारोंदे बनाने की,
आदत सी है मुझे.........

कहने को तो हर कदम,
बहुत सोच के चलती हु,
भलो को मै बुरों से,
बहुत खोज के चलती हु,

 गेरों  ने तो धोका,
दिया नही अब तलक,
अपनों से ही दगा पाने की,
आदत सी है मुझे.............

न लैला ने मजनू को,
पाया था इस जहाँ में,
ना शीरीं और फरहाद,
का मिलन हुआ था.....

फर भी है क़यामत के,
उस राह को पाने की,
उस राह पे जाने की,
हसरत सी है मुझे..........

रंग तो ना जाने,
इस दुनिया में कितने है,
सोना और चांदी भी,
जहाँ में बिखरे हैं.......

इन्द्रधनुष तक ही जाने की,
सूरज से सोने को पाने की,
चाँद से चांदी चुराने की,
शिद्दत सी है मुझे..........

इस युग में सब रावण हैं,
कोई राम नही होता,
ले आए संजीवनी तो भी,
हनुमान नही होता........

फिर भी किसी रावण में,
एक राम को पाने की,
चाहत सी है मुझे .......................!!!

- V@ru




Tuesday, 6 September 2011

माटी


जब चाक पे माटी चढ़ती है
हाथों की ओंट से बढती है
कोई रूप निराला लेती है
फिर अग्नि परीक्षा देती है

करती  है परीक्षा पार तभी
खुलते हैं जग के द्वार सभी
अपना जीवन भी माटी सा
अग्नि सा है संसार अभी

कभी लिपता है इससे आँगन
कभी खुशबु  से झूमे ये मन
पर धूल कहीं बन जाए कभी
और धरती माँ कहलाए कभी

दिखती है ये लाचार कभी
बह जाती है बेकार कभी
पर जब भी बने रब की मूरत
झुकते हैं शीश हज़ार तभी

जितने होते माटी के रंग
उतने ही जीवन के हैं ढंग
कट जाए कभी गुमनामी में
कभी जगमग हो तारों के संग

खुशियों का मिले अम्बार कभी
आंसू की मिले बौछार कभी
पर जो भी मिले रख लो हस कर
कुदरत के हैं उपहार सभी.....:)

-varu

पंख


पिंजरे में कैद बैठी चिड़िया
देखो के सोच रही है क्या
जब उड़ना नहीं नसीब में तो
क्यों पंख देये मुझको मौला

गिरकर ही तो उठना आएगा
उठकर ही तो संभला जाएगा
ये निघेबान पिंजरा कब तक
मेरे पंखों को जंग लगाएगा

एक दिन तो निकलूंगी बाहर
पाउंगी मैं वो स्वतंत्र  समां
चट्टान तोड़ फूटे झरना
उसे कोई रोक सका है कहाँ

वो कहते हैं इस दुनिया में
हर कदम पे है कोई जाल बिछा
उस जाल के दर से हम नादां
इस जेल में जीते रहेंगे क्या

सोने के पिंजरे में रखकर
वो चाहते हैं मेरा ही भला
पर ख़ुशी के दामन में छिपकर
क्या गम से कोई बच है सका

उस इश के शीश मैं भी है विष
अग्नि में झुलसी थी सीता
पाँच पति भी रक्षा कर न सके
सदियों से बताती है गीता

अपने धर्मो कर्मो को कभी
दुनिया से नहीं मैंने तौला
बस यही सोचती वो चिड़िया
क्यों पंख देये मुझको मौला ....

-varu

जिंदगी


वक़्त की तलवार पर
ये नाचते कदम
मुश्किलों के काँटों में
झुलसता हुआ मन

शिकवे हों हज़ार भले
जिंदगी से पर
आना चाहेंगे दोबारा
ले के फर जनम

कह गए है ज्ञानी के
जीवन है एक जाल
हमको तो हर धागा इसका
लगता है कमाल

कहते हैं वो के मोक्ष पा
सब-चक्रव्यूह ख़तम
किसने देखा मोक्ष को
है मिथ्या या भरम

माना के जीने मरने में
तकलीफ है मगर
सोचो करेंगे क्या वहां
हम होके भी अमर

जीने की है कीमत तभी
जब मरने का हो डर
हर पल है  एक राज़ जिससे
हम है  बेखबर 

कूए का हो करना भी क्या
गर प्यास ही न हो
कांटो भरी डगर ना,जलता वो दिन अगर
उस ठंडी हरी घास का एहसास ही ना हो

रात ना आए
ना डूबे ये दिन अगर
सुबह की पहली किरण का
आभास ही ना हो

जीवन है एक सफ़र
कहो, जाएंगे किस डगर ?
मन में अगर किसी मंजिल की
तलाश ही ना हो

ख़ुशी का साथी गम है
सुख दुःख की संगिनी
किसने किया जुदा इन्हें-किसने किया अलग
रब ने बनाई जिंदगी ,मृत्यु की बंदिनी

-Varu

खुदा


कभी ढूंडा है तुझे मंदिर में
कभी मस्जिद में तुझको खोजा
कभी व्रत हैं किये बस तेरे लिये
कभी रक्खा किये बन्दे रोज़ा

पूजा है तुझे तुलसी में भी
तुझे पीपल मैं भी है पूजा
हर मन में एक विश्वास बसा
नहीं तेरे सिवा कोई दूजा

पत्थर पे शीश झुकाते हैं
कभी नाग को दूध पिलाते हैं
तुझसे मिलने को भक्त तेरे
चट्टानें भी चढ़ जाते हैं

रखता है कोई विश्वास तो कोई
अंधविश्वास कह हँसता है
कहीं बंधते धागे मन्नत के
कोई चरणों में बलि रखता है

कहीं तू है "इश्वर का बेटा "
कोई कहता तुझको जगतपिता
कोई रब कहकर पूजे तुझको
कहीं कहते तुझको देवी माँ

तुझे माँगा 'सति" ने तुझसे ही
कहीं "मीरा " तेरी दीवानी हुई
कभी दशरथ का तू पुत्र बना
कहीं "द्रौपदी " का तू है भाई

नहीं देखा तुझे किसी ने पर
"वो सब देखता है " ,ये कहते हैं
कोई धर्म से तो कोई इच्छा से
तेरे भक्त बने सब रहते हैं

ना माने तुझे, तो तू कुछ भी नहीं
माने, तो ये जग संसार तेरा
जो माने तुझे कहते हैं वो
ऊपर  तुझसे मिलना सबको
मैं चाहू तुझे तो कहती हूँ
आकर मिल जा एक बार ज़रा ....


-varu

कैसा आलम


मेरी ही आँखें आंसू बहाती हैं और ,
मेरे ही गाल उनको बहा देते हैं,
मेरे ही अपने देते हैं घाव मुझे
मेरे ही ज़ख्म मरहम लगा लेते हैं ,

साथ माँगू किसी से ,गवारा नहीं
मेरा साहिल या कोई किनारा नहीं
बहुत मुश्किलें आई हैं बनके मेहमां
मेरी गैरत ने दामन पसारा  नहीं

क्यों नहीं है यहाँ मेरे जैसा कोई
या बनी मैं नहीं इस जहाँ के लिये
आग में जलके जैसे दमकता है कुंदन
मुझको भेजा गया इम्तहान के लिये

मेरे सपनो का कोई खारोंदा कभी
अपने संग में बहाती लहर ले गई
मैंने खुशियों का तोहोफा भी जिसको दिया
मुझे बदले में वो शय ज़हर दे गई

अब तो ऐसा है आलम मेरी रूह का
मेरी लोरी ही मुझको सुला देती है
मेरे सपने ही देते हैं मुझको जगा
मेरी तन्हाई महफ़िल सजा देती है

आके गम मेरा मुझको हँसाता कभी
आके बरसात मुझको जला देती है ........

मै तुझसे मिलने आई थी


कभी वीराने में थी महफ़िल
कभी महफ़िल में तन्हाई थी
कभी साया था तू मेरा तो
कभी मैं तेरी परछाई थी

जब चाँद पे छाई थी पूनम 
मै तुझसे मिलने आई थी....


एहसास था तेरा बूंदों में
जब बारिश में मै नहाई थी
और ज़िक्र था तेरा शब्दों में
जब मैंने कलम उठाई थी


बाहों में लेकर जब तुमने
कोई मनचली सी बात कही
तेरे सीने में छुप करके
मैं चुपके से शरमाई थी



तेरे लिये है कितना प्यार बसा
मेरी आँखों में,कहीं देख न ले
इस  डर से मैंने कितनी दफा
तुझसे ये नज़र चुराई थी



माना के मैं हूँ शैतान बहुत
पर दिल में मेरे गहराई थी
तेरी पलकें देखी थी जब नम
सारी रात ना मैं सो पाई थी


जब चाँद पे छाई थी पूनम
मै तुझसे मिलने आई थी




-varu

अचानक


अचानक हुआ क्या ज़हन को मेरे
ये आँखों से नींदें क्यों मेरी उडी
मेरी धड़कन से रिश्ता तेरे दिल का और 
मेरे दिल से धड़कन ये  तेरी जुडी

देखकर तुझको नज़रें झुकाने लगी
तेरी बाहों में दुनिया बसाने लगी
क्या हुआ ये मुझे एक ही पल में के
अपने खाबों में तुझको बुलाने लगी

तुझसे मिलना इबादत सा लगने लगा
तुझे दामन में अपने छुपाने लगी
महफिलों में रहूँ चाहे तन्हाई में
आहटें तेरी दिल को सताने लगी

सोचकर तुझको यूँ मुस्कुराने लगी
और जुदाई में पलकें भिगाने  लगी
मुझको मुझसे चुराकर तू यूँ ले गया
बनके जोगन सी मै तुझको चाहने लगी

दिल न जाने के क्या हूँ मैं तेरे लिये
जाँ है तू मेरी तू मेरा संसार है
शमा जलती है परवाना भी जलता है
दुनिया कहती हैं ये दर्द ही प्यार है ........


-varu

इक दिन


चुपके से तेरे सपनो में आउंगी इक दिन
तेरे सपनो को तुझसे चुरा जाउंगी
उन्ही सपनो को इक दिन बनाकर हकीकत
तेरी आँखों को वापस लौटा  जाउंगी

धीरे से तेरे आँगन में आउंगी इक दिन
तेरी तुलसी में वो जल चढ़ा जाउंगी
गम तेरे मांग लुंगी मैं इश्वर से सरे
चादर में खुशियों की तुझको सुला जाउंगी

तेरे मंदिर में दीपक जलाऊंगी इक दिन
तेरी दुनिया को जन्नत बना जाउंगी
नींद से जब तू जागे तो हैरान न हो
तेरी खातिर निशानी छुपा जाउंगी

तेरी खुशेयों के दम पे मैं हस्ती रहूंगी
और एहसासों में तेरे बस्ती रहूंगी
जाते जाते मगर मैं तेरे माथे पर 
अपने काजल का टीका लगा जाउंगी

करते हैं वादा तुझसे ये जज़्बात मेरे
आएगी जब कभी मौत  राहों में तेरे
कहीं मैं रहूँ मेरी जां  इस जहाँ में
उस पल तेरी राहों में आ जाउंगी

तेरी बाहों में सांसें गँवा जाउंगी
सौपकर  तेरा जीवन मैं तुझको दोबारा
उस दिन अपनी मंजिल को पा जाउंगी

कस्तूरी मृग सा ढूँढोगे मुझको जहाँ में
फिजा में वो खुशबू मिला जाउंगी

-varu

मन


फिजाओं से आज चुरा कर के खुशबु,
जहाँ सिर्फ अपना ,महकाने का मन है
अपने सपनो की दुनिया में जाने का या,
हकीकत में तुझको बुलाने का मन है 

तेरी राहों में दीपक जलाकर हज़ारों
इंतज़ार में पलकें बिछाने का मन है,
मन के रंगों से चौखट सजाने का या,
सज के खुद तेरी चौखट पे जाने का मन है,

बहुत मिल चुकी तुझसे सपनो में मै,
अब मिलकर कुछ सपने सजाने का मन है,
अपनी चाहत में तुझको डुबाने का या
तेरे इश्क में खुद डूब जाने का मन है

बहारों को आज बनाकर के मेहमां,
आँगन में सावन बुलाने का मन है 
तेरी बातों में आँखें भीगाने का या,
तेरे संग बूंदों में भीग जाने का मन है,

सिर्फ तेरे लिये आजतक जो लिखी
सारी कविताएँ तुझको सुनाने का मन है,
तेरी आँखों से नींदें चुराने का या,
तेरे काँधे पे खुद ही सो जाने का मन है,

चाँद का महेल हो तारे हों पहरेदार
वक़्त से कुछ लम्हें आज मांग लें उधार,
इबादत में तेरी उठाने का पलकें,
या सजदे में सर को झुकाने का मन है,

इन्ही लम्हों में अब तो बिताने का जीवन ,
या जीवन में ये लम्हे पाने का मन है....

-Varu


मै


मै वो सावन नहीं आए जो बार बार
न ही हु वो फिजा,जिसके रंग हो हज़ार
मै तो लम्हा हु वो,गुज़रे बस जो एक बार
बिखरे जो तो कभी सिमटे न,ऐसा हूँ हार..

खयालो की हवा में उड़ता आँचल हूँ मै
सपनो की दुनिया का कोई बादल हूँ मै
अनजानी किसी शै के लिये पागल हूँ मै
ख़ामोशी में लिपटी हुई एक हलचल हूँ मै..


पंच्छी हु मै जिसका है अपना सारा आकाश
किसी ख़ास चीज़ की पर है मुझे तलाश
किसी ताले की चाबी कभी,कभी उलझा एक सवाल
बरसे जो झूमकर ऐसा सावन हूँ मै...

एक खुली किताब कभी,छुपा एक राज़
कोई अन्छीड़ा सा साज़ जैसे हरदम हूँ मै 
किस्सा-ई-तन्हाई कभी,लम्हा-ई-जुदाई 
आंसुओ की कोई धार जैसे पावन हु मै....

सर्दियों की धुप जैसे,गर्मियों की शाम
जो सबको दे आराम ,ऐसा मोसम हूँ मै
टूटे हुए सपनो पे कभी,अपनों के ज़ख्मो पे
लगा हुआ एक दोस्ती का मरहम हूँ मै...

मन की एक शरारत कभी,रब की एक इनायत
फैला जो इबादत में ऐसा दामन हूँ मै
दुआओं का असर ,कभी मासूम बेखबर
बीता हुआ चंचल सा जैसे बचपन हूँ मै..

मै रंग वो नहीं जो छूट जाए पानी से 
न किरदार वो जो मिट सके किसी कहानी से
मै तो हूँ वो मेहँदी जो लगते वक़्त तो मेहेकू 
धुलकर भी रंग छोड़ दू बड़ी आसानी से.......

By Varu

हम


ये वक़्त गुज़रने लगा है यूँ
जैसे मुट्ठी से रेत हो कम
इस आज मैं जितनी ख़ुशी है कल
इस ख़ुशी में होगा उतना गम 

अपनों की महफ़िल मैं जगना
सपनो की कश्ती मैं सोना
जो साथ मिला है शिद्दत से
कैसा होगा उसको खोना

रातें जो कटी बस बातों में
संग रहे सभी हालातों में
जब भी मस्तानी चली हवा
तब हाथ थे अपने हाथों में

एक सपनो की दुनिया जैसा
है अपना यूँ एक संग होना
कभी हँसना पेट पकड़ कर तो
कभी काँधे सर रखकर रोना

कल जाने कहाँ होंगे हम तुम
पर साथ रहेगा याराना
जितना मैंने तुझको समझा
उतना तुने मुझको जाना 

कुछ सोच के दिल भर आएगा
कुछ सोच के होंगी आँखें नम
जब ये पल याद आएँगे और
खुद को तन्हा पाएँगे हम

पर चाहकर भी इन लम्हों में
वापस न जा पाएँगे हम ......

v@ru

बचपन


खो के जिसको किसी ने ना पाया दोबारा 
ये आँखें मेरी वो जहाँ  ढूँढती हैं 
क़दमों ने गीली माटी पे छोड़े थे जो 
नन्हे बचपन के  प्यारे निशाँ ढूँढती हैं 




ना जाने कहाँ खो गए सारे पलछिन  
पापा के कन्धों पे गुज़रते हुए दिन 
माँ के आँचल में आते ही  सो जाना वो 
मासूमियत की इन्तहां ढूँढती हैं 
खो के जिसको किसी  ने ना पाया दोबारा
ये आँखें मेरी वो जहाँ  ढूँढती हैं




तोतली जुबां से वो  बहाने बनाना 
डर के मारे वो बिस्तर के नीचे छुप जाना 
गीले  हाथों ने बारिश के पानी में जो 
बहाई थी वो कश्तियाँ ढूँढती हैं 
खो  के जिसको किसी ने ना पाया दोबारा
ये आँखें मेरी वो जहाँ  ढूँढती हैं




पानी के बुलबुले को  पकड़ने की चाहत 
पर छूते ही वो फूट जाने की आहट 
मोटी मोटी  आँखों से बरसते वो मोती 
वो दादी का टीका ,वो मंदिर की ज्योति 
वक़्त  के तूफानों में जो बह गई......
नन्हे सपनो की वो बस्तियां ढूँढती  हैं....
खो के जिसको किसी ने ना पाया दोबारा,
ये आँखें मेरी  वो जहां ढूँढती हैं ...




V@ru