काँटों में से जाने की,
और ज़ख्म ही पाने की,
आदत सी है मुझे...
सबपे भरोसा करने की,
करके धोखा खाने की,
फिर भी न पछताने की,
आदत सी है मुझे....
हर सीप में मोती है,
ये सोच के चलती हूँ,
इक अदद मोती पाने को,
हर वक़्त मचलती हु....
सीपों से भरे पूरे,
सागर के किनारों से,
भी खाली हाथ आने की,
आदत सी है मुझे......
पतझड़ में बहारों में,
सागर के किनारों में,
यु ही वक़्त गवाने की,
आदत सी है मुझे......
दिए नही जलते हैं,
तूफानी हवाओं में,
लोग नही चलते संग,
कांटो भरी राहों में.....
फर भी हवा के आगे ही,
शम्मा जलने की,
चीराग सजाने की,
आदत सी है मुझे.......
जानती हु सदा संग,
कोई रहता नही है,
खारोंदा कोई न ऐसा,
जो बहता नही है,
फिर भी समुंदर किनारे,
बिना हिम्मतो को हारे,
रेत के खारोंदे बनाने की,
आदत सी है मुझे.........
कहने को तो हर कदम,
बहुत सोच के चलती हु,
भलो को मै बुरों से,
बहुत खोज के चलती हु,
गेरों ने तो धोका,
दिया नही अब तलक,
अपनों से ही दगा पाने की,
आदत सी है मुझे.............
न लैला ने मजनू को,
पाया था इस जहाँ में,
ना शीरीं और फरहाद,
का मिलन हुआ था.....
फर भी है क़यामत के,
उस राह को पाने की,
उस राह पे जाने की,
हसरत सी है मुझे..........
रंग तो ना जाने,
इस दुनिया में कितने है,
सोना और चांदी भी,
जहाँ में बिखरे हैं.......
इन्द्रधनुष तक ही जाने की,
सूरज से सोने को पाने की,
चाँद से चांदी चुराने की,
शिद्दत सी है मुझे..........
इस युग में सब रावण हैं,
कोई राम नही होता,
ले आए संजीवनी तो भी,
हनुमान नही होता........
फिर भी किसी रावण में,
एक राम को पाने की,
चाहत सी है मुझे .......................!!!
- V@ru