Tuesday, 6 September 2011

मै तुझसे मिलने आई थी


कभी वीराने में थी महफ़िल
कभी महफ़िल में तन्हाई थी
कभी साया था तू मेरा तो
कभी मैं तेरी परछाई थी

जब चाँद पे छाई थी पूनम 
मै तुझसे मिलने आई थी....


एहसास था तेरा बूंदों में
जब बारिश में मै नहाई थी
और ज़िक्र था तेरा शब्दों में
जब मैंने कलम उठाई थी


बाहों में लेकर जब तुमने
कोई मनचली सी बात कही
तेरे सीने में छुप करके
मैं चुपके से शरमाई थी



तेरे लिये है कितना प्यार बसा
मेरी आँखों में,कहीं देख न ले
इस  डर से मैंने कितनी दफा
तुझसे ये नज़र चुराई थी



माना के मैं हूँ शैतान बहुत
पर दिल में मेरे गहराई थी
तेरी पलकें देखी थी जब नम
सारी रात ना मैं सो पाई थी


जब चाँद पे छाई थी पूनम
मै तुझसे मिलने आई थी




-varu

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