
ये आँखें मेरी वो जहाँ ढूँढती हैं
क़दमों ने गीली माटी पे छोड़े थे जो
नन्हे बचपन के प्यारे निशाँ ढूँढती हैं
ना जाने कहाँ खो गए सारे पलछिन
पापा के कन्धों पे गुज़रते हुए दिन
माँ के आँचल में आते ही सो जाना वो
मासूमियत की इन्तहां ढूँढती हैं
खो के जिसको किसी ने ना पाया दोबारा
ये आँखें मेरी वो जहाँ ढूँढती हैं
तोतली जुबां से वो बहाने बनाना
डर के मारे वो बिस्तर के नीचे छुप जाना
गीले हाथों ने बारिश के पानी में जो
बहाई थी वो कश्तियाँ ढूँढती हैं
खो के जिसको किसी ने ना पाया दोबारा
ये आँखें मेरी वो जहाँ ढूँढती हैं
पानी के बुलबुले को पकड़ने की चाहत
पर छूते ही वो फूट जाने की आहट
मोटी मोटी आँखों से बरसते वो मोती
वो दादी का टीका ,वो मंदिर की ज्योति
वक़्त के तूफानों में जो बह गई......
नन्हे सपनो की वो बस्तियां ढूँढती हैं....
खो के जिसको किसी ने ना पाया दोबारा,
ये आँखें मेरी वो जहां ढूँढती हैं ...
V@ru
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