Tuesday, 6 September 2011

इक दिन


चुपके से तेरे सपनो में आउंगी इक दिन
तेरे सपनो को तुझसे चुरा जाउंगी
उन्ही सपनो को इक दिन बनाकर हकीकत
तेरी आँखों को वापस लौटा  जाउंगी

धीरे से तेरे आँगन में आउंगी इक दिन
तेरी तुलसी में वो जल चढ़ा जाउंगी
गम तेरे मांग लुंगी मैं इश्वर से सरे
चादर में खुशियों की तुझको सुला जाउंगी

तेरे मंदिर में दीपक जलाऊंगी इक दिन
तेरी दुनिया को जन्नत बना जाउंगी
नींद से जब तू जागे तो हैरान न हो
तेरी खातिर निशानी छुपा जाउंगी

तेरी खुशेयों के दम पे मैं हस्ती रहूंगी
और एहसासों में तेरे बस्ती रहूंगी
जाते जाते मगर मैं तेरे माथे पर 
अपने काजल का टीका लगा जाउंगी

करते हैं वादा तुझसे ये जज़्बात मेरे
आएगी जब कभी मौत  राहों में तेरे
कहीं मैं रहूँ मेरी जां  इस जहाँ में
उस पल तेरी राहों में आ जाउंगी

तेरी बाहों में सांसें गँवा जाउंगी
सौपकर  तेरा जीवन मैं तुझको दोबारा
उस दिन अपनी मंजिल को पा जाउंगी

कस्तूरी मृग सा ढूँढोगे मुझको जहाँ में
फिजा में वो खुशबू मिला जाउंगी

-varu

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