Tuesday, 6 September 2011

हम


ये वक़्त गुज़रने लगा है यूँ
जैसे मुट्ठी से रेत हो कम
इस आज मैं जितनी ख़ुशी है कल
इस ख़ुशी में होगा उतना गम 

अपनों की महफ़िल मैं जगना
सपनो की कश्ती मैं सोना
जो साथ मिला है शिद्दत से
कैसा होगा उसको खोना

रातें जो कटी बस बातों में
संग रहे सभी हालातों में
जब भी मस्तानी चली हवा
तब हाथ थे अपने हाथों में

एक सपनो की दुनिया जैसा
है अपना यूँ एक संग होना
कभी हँसना पेट पकड़ कर तो
कभी काँधे सर रखकर रोना

कल जाने कहाँ होंगे हम तुम
पर साथ रहेगा याराना
जितना मैंने तुझको समझा
उतना तुने मुझको जाना 

कुछ सोच के दिल भर आएगा
कुछ सोच के होंगी आँखें नम
जब ये पल याद आएँगे और
खुद को तन्हा पाएँगे हम

पर चाहकर भी इन लम्हों में
वापस न जा पाएँगे हम ......

v@ru

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