मै वो सावन नहीं आए जो बार बार
न ही हु वो फिजा,जिसके रंग हो हज़ार
मै तो लम्हा हु वो,गुज़रे बस जो एक बार
बिखरे जो तो कभी सिमटे न,ऐसा हूँ हार..
खयालो की हवा में उड़ता आँचल हूँ मै
सपनो की दुनिया का कोई बादल हूँ मै
अनजानी किसी शै के लिये पागल हूँ मै
ख़ामोशी में लिपटी हुई एक हलचल हूँ मै..
पंच्छी हु मै जिसका है अपना सारा आकाश
किसी ख़ास चीज़ की पर है मुझे तलाश
किसी ताले की चाबी कभी,कभी उलझा एक सवाल
बरसे जो झूमकर ऐसा सावन हूँ मै...
एक खुली किताब कभी,छुपा एक राज़
कोई अन्छीड़ा सा साज़ जैसे हरदम हूँ मै
किस्सा-ई-तन्हाई कभी,लम्हा-ई-जुदाई
आंसुओ की कोई धार जैसे पावन हु मै....
सर्दियों की धुप जैसे,गर्मियों की शाम
जो सबको दे आराम ,ऐसा मोसम हूँ मै
टूटे हुए सपनो पे कभी,अपनों के ज़ख्मो पे
लगा हुआ एक दोस्ती का मरहम हूँ मै...
मन की एक शरारत कभी,रब की एक इनायत
फैला जो इबादत में ऐसा दामन हूँ मै
दुआओं का असर ,कभी मासूम बेखबर
बीता हुआ चंचल सा जैसे बचपन हूँ मै..
मै रंग वो नहीं जो छूट जाए पानी से
न किरदार वो जो मिट सके किसी कहानी से
मै तो हूँ वो मेहँदी जो लगते वक़्त तो मेहेकू
धुलकर भी रंग छोड़ दू बड़ी आसानी से.......
By Varu
awesome creation....its magic or illusion.........
ReplyDeleteThank u...
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